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Home उत्तर प्रदेश

Electoral Bond : SBI ने चुनावआयोग को सौंपे चुनावी बॉन्ड के दस्तावेज, चुनावी बांड से पर्दा उठाना चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती !

by Desk
March 16, 2024
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Electoral Bond : SBI ने चुनाव आयोग को सौंपे चुनावी बॉन्ड के दस्तावेज, चुनावी बांड से पर्दा उठाना चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती !

Published By Roshan Lal Saini

Electoral Bond : सुप्रीम कोर्ट ने आठ साल से ज़्यादा वक़्त से लंबित इलेक्टोरल बांड पर फैसला आने के बाद अब एसबीआई ने चुनाव आयोग को कुछ दस्तावेज और एक पेन ड्राइव में सारी जानकारी सौंप दी है। इन दस्तावेजों में किस राजनीतिक पार्टी को किन-किन लोगों ने कितना पैसा दिया, इसकी जानकारी है। अब यह चर्चा है कि ये जानकारी 15 मार्च यानि आज सार्वजनिक की जाएगी, जिससे आम लोगों को भी हिंदुस्तान की सारी राजनीतिक पार्टियों के पास मिले चंदे की जानकारी मिल सकेगी।

यही वजह है कि इस जानकारी के सार्वजनिक होने को लेकर सभी निगाहें पिछले करीब दो हफ्ते से टिकी हुई हैं, और ये बेचैनी पिछले तीन दिन से और बढ़ गई है। माना जा रहा है कि ये जानकारी इस लोकसभा चुनाव पर गहरा असर डाल सकती है। सवाल ये है कि क्या आज बांड का बम फस सकेगा?

Electoral Bond

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ना-नुकुर करते हुए एसबीआई यानि स्टेट बैंक आफ इंडिया ने चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बांड की सारी जानकारी दे। एसबीआई ने इस जानकारी में बताया है कि किस पार्टी को किस-किस कंपनी, सेल कंपनी और धन्नासेठ ने कितने रुपए के इलेक्टोरल बांड खरीदकर दिए। और इस प्रकार कुल कितने इलेक्टोरल बांड खरीदे गए और उनकी वैल्यू क्या थी, ये जानकारी एसबीआई ने चुनाव आयोग को दी है। खबरों के मुताबिक, राजनीतिक पार्टियों को फंड देने वालों ने 22 हजार 2 सौ 17 इलेक्टोरल बांड खरीदे, जिनका मूल्य अभी तक सामने नहीं आ सका है, लेकिन जानकारी में कहा गया है कि राजनीतिक पार्टियों ने 22 हजार 30 बांड कैश करा लिए थे, जबकि 187 इलेक्टोरल बांड कैश नहीं कराए गए हैं। जानकारों का कहना है कि इन इलेक्टोरल बांड के जरिए पार्टियों को अरबों रुपए चंदे के रूप में मिले हैं, जिनमें सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को मिला है। इसे गुप्त चंदे के रुप में लिया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद आखिरकार इस पर हथौड़ा चला दिया और ये जानकारी आखिरकार चुनाव आयोग तक पहुंची। Electoral Bond

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बहरहाल, कुछ जानकार कह रहे हैं कि एसबीआई ने इलेक्टोरल बांड की जानकारी देने के लिए जो लंबा समय मांगा था और सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद जिस प्रकार से 13 मार्च को जानकारी सौंपी, उसे भेजने में आखिरकार का समय लगा। इस लंबे समय में काफी कुछ गड़बड़ी हो सकती है यानि काफी कुछ छुपाया गया लगता है। क्योंकि इस जानकारी में झोल ये है कि चुनाव आयोग अलग-अलग दो आंकड़े जारी करेगा। पहली जानकारी वो उन लोगों और कंपनियों की देगा, जिन्होंने चुनावी बांड खरीदे। और दूसरी जानकारी ये देगा कि किस पार्टी को इन इलोक्टोरल बांड के जरिए कितना गुप्त चंदा मिला। लेकिन इसमें लोगों को ये जानकारी नहीं मिल सकेगी कि किस कंपनी या किस धन्नासेठ ने किस पार्टी या किस नेता को कितने रुपए का इलेक्टोरल बांड खरीदकर दिया यानि उसे कितना गुप्त चंदा दिया? यानि ये पैसे कितने किसे मिले और किसके जरिए मिले, ये जानकारी लोगों को नहीं मिल सकेगी? लेकिन ये एक प्रकार से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना करने से बचने की कोशिश है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जो आदेश दिया था, लगता है कि उसका पूरा पालन नहीं किया गया है। Electoral Bond

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Model Code Of Conduct

इस प्रकार से जनता को ये पता ही नहीं चल सकेगा कि किस पार्टी के पास कितना पैसा और किस-किस धन्नासेठ और कंपनी ने दिया? इस प्रकार से कड़ियां जोड़कर जानकारी देने को सुप्रीम कोर्ट ने भी जोर देकर अपने आदेश में नहीं कहा और इसी का फायदा एसबीआई ने उठा लिया और इस प्रकार से राजनीतिक पार्टियां भी लिए गए गुप्त चंदे की जानकारी सार्वजनिक होने से बच जाएंगी। इस प्रकार से ये एक बड़ा खेल हो गया और इस खेल में ये जरूरी जानकारी छुप जाएगी कि किस पार्टी के पास आखिरकार कितना गुप्त चंदा आया और वो किसके जरिए आया। लेकिन लोग ये समझ रहे हैं कि अब तो पता चल जाएगा कि किस पार्टी या किस नेता को  कितना गुप्त चंदा किसने दिया? लेकिन ये ऐसे ही हो गया कि पैसों का ढेर नहीं दिखाया, बल्कि उन्हें बोरे में भरा हुआ दिखा दिया। इससे लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि कितना पैसा आया। इससे गुप्त चंदा देने वाली उन कंपनियों पर भी पर्दा पड़ा रहेगा, जो सेल कंपनियां हैं। Electoral Bond

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दरअसल, 30 अक्टूबर को भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट से इलेक्टोरल बांड की वकालत की थी और कहा था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले चंदों में साफ धन आएगा। इसलिए जनता को उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना इस बारे में कुछ भी जानने का सामान्य अधिकार नहीं होना चाहिए। लेकिन इसके एक दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई शुरू कर दी और आखिरकार फरवरी में एसबीआई को आदेश दिया कि वो इलेक्टोरल बांड की जानकारी चुनाव आयोग के हवाले करे और चुनाव आयोग को कहा गया कि वो उस जानकारी को सार्वजनिक करे। कहने का मतलब ये है कि मौजूदा केंद्र की मोदी सरकार भी ये नहीं चाहती है कि गुप्त चंदे के सही आंकड़े देश की जनता के हाथ लगें। लेकिन बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया, लेकिन जनता का गणित इतना मजबूत नहीं कि वो ये जानकारी जुटा सके कि किस पार्टी को कितना गुप्त चंदा मिला। Electoral Bond

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बहरहाल, साल 2017 में केंद्र की मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा की थी, जिसने कि 29 जनवरी 2018 को क़ानूनी शक्ल ले ली। इसके बाद इस इलेक्टोरल बांड के जरिए राजनीतिक पार्टियों के बैंक खातों में चंदे की बारिश शुरू हो गई। जानकारों का कहना है कि इलेक्टोरल बांड के जरिए सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को मिला है। हालांकि मेरा मानना ये है कि इसमें कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि भाजपा को ही सबसे ज्यादा चंदा मिलेगा ही और मिलना भी चाहिए। जाहिर है कि जो पार्टी सत्ता में होती है, उसी को चंदा सबसे ज्यादा मिलता है और ये कोई आज की बात नहीं है, ये तो कांग्रेस के शासन काल में भी हुआ है और आगे भी होता रहेगा। Electoral Bond

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कोई भी कमजोर को पैसा क्यों देगा, सभी ताकतवर को ही पैदा देंगे, भले ही उसका नाम दान या चंदा रख दिया जाए, क्योंकि ये चंदा देने वालों को भी तो ठेके और दूसरे सरकारी फायदे चाहिए होते हैं और वो तभी मिलेंगे, जब सरकार उन पर मेहरबान होगी और जाहिर है कि सरकार उन पर तभी मेहरबान होगी, जब वो सरकार में जो पार्टी है उसकी झोली में कुछ डालेंगे। तो ये एक प्रकार का गिव एंड टेक वाला ही मामला है, इसलिए इसमें हैरानी वाली कोई बात नहीं है। हैरानी वाली बात अगर कोई है, तो वो ये है कि जो लोग कई दिनों से बहुत हो-हल्ला कर रहे हैं और खुश हो रहे हैं कि अब पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी उन्हें पता चल जाएगी और साथ में ये भी पता चल जाएगा कि किन धन्नासेठों और कंपनियों ने किस पार्टी और नेता को कितना चंदा दिया, वो लोग बहुत बड़े भ्रम में हैं। और आज जब चुनाव आयोग एसबीआई द्वारा दी गई जानकारी को सार्वजनिक कर रहा है, तब ऐसे लोगों की सारी खुशी गायब होने वाली है। यानि जो कुछ हाथ लगेगा, वो उम्मीद से बहुत कम है। Electoral Bond

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Tags: Electoral BondNEWS14TODAY.COMRaising the curtain on electoral bonds is a big challenge for the Election CommissionSBI handed over electoral bond documents to the Election Commission
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