Special Story : एक पत्रकार और कई पत्रकार संगठनों में पदाधिकारी होने के नाते मैं बड़ी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूं कि पत्रकारों को बिना किसी स्वार्थ, दबाव और पक्ष-विपक्ष का समर्थन न करते हुए राष्ट्र और नागरिकों के हित में वाजिब सवाल पूछना और लिखना चाहिए।
आजकल सोशल और डिजिटल मीडिया पर अधिकतर पत्रकारों में तथ्यों की कमी देखने को मिलती है कई पोर्टलों पर आधारहीन खबरें देखने, सुनने और पढ़ने को मिलती हैं। कई बड़े मीडिया चैनल भी इससे अछूते नहीं है। ऐसा लगता है कि जैसे आज़ का मीडिया भी पक्ष और विपक्ष की तर्ज़ पर दो धड़ों में बट गया हो, क्योंकि कई बार एक तरफा खबरें दिखाई पड़ती भी हैं।
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दरअसल देश में पुलिस प्रशासन का प्रयोग ब्रिटिश काल में पुलिस बल की स्थापना के समय से ही पुलिस का प्रयोग अंग्रेजों के खिलाफ उठने वाली आवाज को दबाने के लिए होता रहा है। जो आज भी बदस्तूर जारी है। पुलिस अधिनियम में बदलाव की तमाम कोशिश कोशिशें के बावजूद देश के तमाम राजनीतिक दल पुलिस अधिनियम को बदलने में कोई रुचि नहीं दिखाते, क्योंकि उनको डर है कि अगर पुलिस अधिनियम में बदलाव होता है तो पुलिस के ऊपर राजनीतिक दलों का कोई अधिकार नहीं रह जाएगा और राज्य की सत्ता पर उनका कंट्रोल करना मुश्किल होगा।
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इसीलिए आज सत्ता के खिलाफ उठने वाली आवाज़ को दबाने के लिए तमाम राजनीतिक दल पुलिस को अपनी कठपुतली की तरह प्रयोग करते हैं। इसी के तहत कई बार आम नागरिकों और पत्रकारों पर पुलिस प्रशासन कंट्रोल करने की कोशिश करता है। अक्सर देखा गया है कि दिल्ली-नोएडा के पत्रकारों के खिलाफ किसी अन्य राज्य की पुलिस एफआईआर करके या बिना एफआईआर किए भी स्थानीय पुलिस को सूचित किए बिना पत्रकार को उठाकर ले जाती है। ऐसी खबरें तमाम राज्यों से सुनने को मिलती है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
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इसके अलावा मैं आज के पत्रकारों को भी कहना चाहता हूं कि कई लोग किसी स्वार्थ या दबाव में आकर किसी एक राजनीतिक दल के हित की बात करते हैं वह उनके लिए दुखदाई और पत्रकारिता की गरिमा को गिराने वाला है। कहते हैं कि मीडिया देश का चौथा खंभा है इसलिए हमें उसकी अस्मिता को बचाने के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वाहन बहुत ही इमानदारी से करना चाहिए।