यूपी में प्रदूषण नही बल्कि किसानों की आय का स्रोत बनेगी पराली, कैसे रुकेगा दिल्ली का प्रदूषण ?
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र नई दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र में सर्दियों की आहट शुरू होते ही प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन जाता है। दिल्ली ही नहीं आसपास के इलाके के निवासियों के लिए पिछले कई सालों से यह एक बड़ी भारी समस्या बनी हुई है। इस समस्या को देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रयास किया है कि नागरिकों को राहत और किसानों को धान की फसल से चावल के अलावा पैदा हुई पराली से नुकसान के बजाय आय का स्रोत बनाने की पहल की जाए। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में पराली जलाने के कारण किसानों पर लगातार प्रशासनिक कार्रवाई की जा रही है। जिसमें धान के किसानों पर स्थानीय प्रशासन द्वारा जुर्माना लगाने के अलावा जेल भेजने की कार्रवाई की जा रही है। जिससे किसान परेशान हैं।
किसानों की इसी परेशानी को देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से जल्द निजात दिलाने के लिए प्रयासरत है। जिसके लिए सरकार प्रदेश में पराली से कंप्रेस्ड गैस (सीएनजी) का उत्पादन करने की तकनीक पर काम कर रही है, जिससे को आय के साथ-साथ बड़ी संख्या में प्रदेश के लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा। इसके साथ ही शुद्ध जैविक खाद (ग्रीन एनर्जी) का भी उत्पादन होगा, जिसके इस्तेमाल से होने वाली पैदावार के सेवन से बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित हो सकेगा।
दरअसल, सीएम योगी ने प्रदेश में इस समस्या को देखते हुए पहले ही जैव ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए जैव ऊर्जा नीति 2022 को जारी किया था। इस नीति के तहत बड़े पैमाने पर निवेश का लक्ष्य रखा गया था। जिसमें देश के कई बड़े निवेशकों ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में प्रदेश सरकार के साथ एमओयू (समझौता ज्ञापन) किया था, जो अब धरातल पर उतरने जा रहा है। योगी सरकार ने हर तहसील में बायोगैस प्लांट का लक्ष्य रखा था, जिसमें से कुछ जल्द ही शुरू होने को तैयार हैं। जो प्लांट शुरू होने को तैयार हैं उनमें ज़िले बुलंदशहर का बुलंद बायोगैस भी है, जिसकी स्थापना ग्राम लौहगला तहसील में हो रही है। बुलंद बायोगैस ने प्रदेश सरकार के साथ 18 करोड़ 75 लाख रुपए का एमओयू किया था, जिसकी कीमत बढ़कर अब करीब 21 करोड़ रुपए हो गई है।
सरकार के नुमाइंदों के मुताबिक़ यह प्लांट दिसंबर में अपना उत्पादन शुरू कर देगा। इस प्लांट से प्रतिदिन 3 टन सीएनजी का उत्पादन होगा, जिससे प्रदेश में पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम होगी। वहीं 80 से 100 लोगों को रोजगार भी मिलेगा। इनमें कौशल और अकौशल (स्किल्ड और अनस्किल्ड) दोनों तरह के लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। बुलंद बायो गैस के मालिक अतहर अहमद ने बताया कि प्लांट में सिर्फ पराली ही नहीं, बल्कि पुआल, गोबर, भूसा, गन्ने की मैली, म्युनिसिपल वेस्ट जैसे डिग्रेडेबल वेस्ट से कंप्रेस्ड बायोगैस या ये कहें कि सारी गैसों का मिक्सचर बनता है। इसको टेक्नोलॉजी की मदद से सीएनजी को प्यूरीफाई किया जाता है। इस प्लांट के लिए पेट्रोल मंत्रालय भारत सरकार की पीएसयू इंडियन ऑयल से लाइसेंस मिल चुका है।
बहरहाल, सरकार और संस्थान को चलाने वाले लोगों का मानना है कि इस प्रोजेक्ट की सबसे अच्छी बात ये ही इसमें बड़ी मात्रा में जैविक खाद का उत्पादन होगा। कंप्रेस्ड गैस के उत्पादन में जो वेस्ट निकलेगा वो 100 फ़ीसदी जैविक होगा। यह वेस्ट सॉलिड भी होगा और लिक्विड भी। जो लिक्विड जैविक खाद होगी प्लांट की ओर से उसे 3 साल तक किसानों को मुफ्त दिया जाएगा। इन किसानों को ज़िलों के डीएम या सीडीओ चिन्हित करेंगे। इससे उन किसानों को फायदा होगा जो फर्टिलाइजर, डीएपी, यूरिया नहीं खरीद पाते हैं। जैविक खाद और लिक्विड खाद का ये फायदा है कि खेती उपजाऊ जमीनों में फर्टिलाइजर खादों की एक मोटी लेयर बिछ चुकी है। वह पेड़ पौधों की जड़ों तक पहुंचने में समय लेती है। वहीं, जैविक खाद को इसमें डालेंगे तो यह 2 से 3 घंटे में जड़ तक पहुंच जाएगी। इससे किसानों का तो फायदा होगा ही, साथ ही आम लोगों को भी शुद्ध जैविक फूड मिल सकेगा। शुद्ध खान-पान से लोगों की सेहत को फायदा होगा।
माना जा रहा है कि समय की मांग को देखते हुए, प्रदेश की योगी सरकार ने इस प्रोजेक्ट को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया है और इसके लिए जैव ऊर्जा नीति-2022 लेकर आए। इसके अंदर सरकार ने तमाम सुविधाएं प्रदान कीं। पहली सुविधा ये रही कि जिनके पास एलओआई लाइसेंस आ गए हैं, वो इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार भी इसमें 75 लाख से लेकर 20 करोड़ रुपए तक अधिकतम सब्सिडी प्रदान कर रही है। यही नहीं, बिजली पर जो सरचार्ज लगता है उसमें 10 साल के लिए छूट दी गई है। स्टांप ड्यूटी में भी 10 साल तक के लिए छूट कर दी गई है तो लैंड डेवलपमेंट चार्जेस को भी 10 साल तक के लिए निशुल्क कर दिया। इसके अलावा मशीनरी पर 50 प्लस 30 यानी कुल 80 फ़ीसदी की छूट दी जा रही है। यही नहीं, रॉ मैटेरियल यानी डिग्रेडेबल वेस्ट की भी व्यवस्था की जा रही है।