नई दिल्ली : वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने 14 जुलाई, 2024 को, मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष इस मुद्दे को उठाया था। उन्होंने तर्क दिया कि इन कानूनों को गलत तरीके से धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था, ताकि राज्यसभा को उन पर बहस करने और वोट देने से रोका जा सके।
मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया कि वह एक संविधान पीठ का गठन करेंगे और उसी के बाद इस मामले पर सुनवाई होगी। यह मामला महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे को उठाता है।
यहां कुछ अतिरिक्त जानकारी दी गई है जो सहायक हो सकती है:
- धन विधेयक क्या होते हैं? धन विधेयक वे विधेयक होते हैं जो केवल सरकारी राजस्व और खर्च से संबंधित होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के अनुसार, धन विधेयकों को राज्यसभा में भेजा जाता है, लेकिन राज्यसभा उनमें संशोधन नहीं कर सकती है या उन्हें अस्वीकार नहीं कर सकती है। वे केवल 14 दिनों के बाद स्वतः ही पारित हो जाते हैं।
- कौन से कानूनों को चुनौती दी जा रही है? चुनौती दिए गए कानूनों में वित्त अधिनियम, 2017 और आधार अधिनियम, 2016 शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इन कानूनों को गलत तरीके से धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया था, ताकि महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों पर राज्यसभा की बहस और वोटिंग को दरकिनार किया जा सके।
- इस मामले का क्या महत्व है? यह मामला विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है। यदि सुप्रीम कोर्ट यह फैसला करता है कि इन कानूनों को गलत तरीके से धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था, तो यह विधायिका की शक्तियों को कम कर सकता है और न्यायपालिका को अधिक शक्ति दे सकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है और अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।